चाँद और मोहब्बत: एक शायराना एहसास
ब्यूरो(एस के आर न्यूज)
चाँद सदियों से प्रेम, विरह और सौंदर्य का प्रतीक रहा है। कवियों और शायरों ने इसकी चाँदनी में अपनी भावनाओं को सजाया और अपनी कल्पनाओं को पंख दिए। जितेंद्र मणि जी की लिखी गई यह पंक्तियाँ भी इसी खूबसूरत भावना को दर्शाती हैं, जहाँ चाँद सिर्फ एक खगोलीय पिंड नहीं, बल्कि प्रेम की तुलना का एक जरिया बन जाता है।
"चेहरे पर लिए दाग चंदा तुझको क्या गुरूर,
तुझपे अदाओं का चढ़ा है जाने क्या सुरूर।"
शायर चाँद के दागों को उसके घमंड से जोड़ते हैं, मानो वह अपनी चमक-दमक पर इतराता हो। लेकिन इसी के साथ वे यह भी इशारा करते हैं कि चाँद की रौशनी उधार की है, जैसे किसी प्रेमी का सौंदर्य अपने प्रिय के प्रेम से ही खिलता है।
"मुझको नहीं तेरी तलाश चांद ईद पर,
मेरी जान आ रही आज अपने ही छत पर।"
यह पंक्तियाँ मोहब्बत की पराकाष्ठा को दर्शाती हैं। ईद का चाँद देखने की परंपरा पुरानी है, लेकिन जब प्रेम अपने शिखर पर होता है, तो प्रिय का दीदार ही सबसे बड़ा त्योहार बन जाता है।
शायर अंत में चाँद को अलविदा कहते हैं—
"हम उसको देख कर के अपनी ईद करेंगे,
चंदा तेरा दीदार अब तो हम ना करेंगे।"
यह सिर्फ एक चाँद से बात नहीं, बल्कि यह भावनाओं का बहाव है। यह दर्शाता है कि जब प्रेमी अपने प्रेम की पूर्णता में होता है, तो उसे किसी प्रतीक की जरूरत नहीं होती।
इस कविता में चाँद एक माध्यम है, जो प्रेम, अभिलाषा और आत्मनिर्भरता के भाव को दर्शाता है। जितेंद्र मणि जी की यह रचना न केवल शायराना है, बल्कि यह प्रेम के सच्चे एहसास की गहराई को भी दर्शाती है।