जेलर की पाठशाला: 'पंख' संस्था से नन्हे सपनों को नई उड़ान
ब्यूरो: (एस के आर न्यूज)
दिल्ली की तिहाड़ और मंडोली जेल में सख्ती से कानून व्यवस्था संभालने वाले डिप्टी सुपरिंटेंडेंट अजय भाटिया, अब जेल की दीवारों के बाहर भी समाज की बेहतरी के लिए मिसाल बन रहे हैं। 59 साल की उम्र में, वे स्लम के नन्हे बच्चों के लिए एक नई उम्मीद बन चुके हैं। 'पंख' नाम की उनकी पहल ने अब तक सैकड़ों बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ दिया है।
कैसे बना एक जेलर 'शिक्षक'
अजय भाटिया ने जेल में विचाराधीन कैदियों के बीच एक पैटर्न देखा—अधिकांश युवा कैदी स्लम या निम्न-मध्यमवर्गीय परिवारों से आते थे, जिनकी शिक्षा अधूरी रह गई थी। यह बात उन्हें अंदर तक झकझोर गई। तभी उन्होंने तय किया कि वे खुद अपने स्तर पर उन बच्चों की नींव मजबूत करेंगे, जिन्हें शिक्षा और संसाधनों की सबसे ज्यादा जरूरत है।
'पंख' संस्था: जहां सपनों को मिलते हैं पंख
भाटिया ने 17 साल पहले अपने बुजुर्ग पिता के जन्मदिन पर इस पहल की शुरुआत की थी। उनकी पत्नी और अन्य बुजुर्गों ने भी इस नेक काम में हाथ बढ़ाया। आज 'पंख' संस्था के तहत वे 2 से 5 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के साथ-साथ उन्हें किताबें, खिलौने और लैपटॉप तक उपलब्ध करवा रहे हैं।
माओं के लिए भी राहत बनी पाठशाला
हर सुबह जब स्लम की महिलाएं घरों में झाड़ू-पोंछा और बर्तन धोने निकलती हैं, तो वे अपने बच्चों को अजय भाटिया की पाठशाला में छोड़ जाती हैं। दोपहर में जब वे वापस लौटती हैं, तो उनके बच्चे सिर्फ अक्षर ही नहीं, बल्कि नई जिंदगी के सबक भी सीख चुके होते हैं।
स्कूल की दहलीज तक पहुंचाते हैं ये जेलर
भाटिया सिर्फ बच्चों को पढ़ाते ही नहीं, बल्कि उनका दाखिला भी खुद एमसीडी स्कूलों में करवाते हैं। उनका सपना है कि ये बच्चे आगे चलकर सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए मिसाल बनें।
एक जेलर से समाजसेवी बनने की कहानी
जेल में अनुशासन सिखाने वाले अजय भाटिया, अब समाज को नई दिशा देने वाले एक मार्गदर्शक बन चुके हैं। उनकी यह पहल उन लोगों के लिए भी प्रेरणा है, जो बदलाव की चाह रखते हैं।
"अगर इरादे मजबूत हों, तो उम्र और हालात मायने नहीं रखते," यह बात अजय भाटिया ने साबित कर दिखाई है।