ब्लॉक अध्यक्षों की हैकिंग? राजनीति के मोहरे बनने का खेल तेज़
(ब्यूरो, एस के आर न्यूज़)
नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में सियासत का एक नया मोर्चा खुल गया है। ब्लॉक अध्यक्षों के चुनाव ने राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है। इस बार के चुनावों में वंशवाद को नकारते हुए नए चेहरों ने अपनी पहचान बनाई है। हालांकि, राजनीति के ये नए चेहरे अभी सियासत के दांव-पेंच से अनजान हैं, और यही उनकी सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है।
सूत्रों की मानें तो कुछ पुराने और अनुभवी राजनेता इन नए ब्लॉक अध्यक्षों को अपने प्रभाव में लेने और उनके जरिए राजनीतिक लाभ उठाने के षड्यंत्र रच रहे हैं। यह खेल इतना बड़ा हो चुका है कि राजनीतिक गलियारों में इसे "ब्लॉक अध्यक्षों की हैकिंग" का नाम दिया जा रहा है।
राजनीति के शॉर्टकट पर साज़िशें तेज़
2025 के आगामी चुनावों में ब्लॉक अध्यक्षों की भूमिका अहम मानी जा रही है। ये अध्यक्ष हजारों परिवारों तक सीधा जुड़ाव रखते हैं, और यही वजह है कि बड़े राजनेता अब ब्लॉक स्तर की राजनीति में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने भी अपने बयानों में इस राजनीति का जिक्र करते हुए कहा कि "ब्लॉक अध्यक्ष अब सिर्फ पद नहीं, बल्कि सियासी एक हिस्सा बन चुके हैं।"
राजधानी दिल्ली के सुल्तानपुर माजरा और किराड़ी विधानसभा सीटों पर इस बार बड़ा राजनीतिक खेल होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। इसी तरह दिल्ली में स।समिकरण दिख रहे है, खास कर सुल्तानपुर माजरा , किराड़ी विधानसभा में नए चेहरों के चुनाव लड़ने की चर्चाओं के बीच, पुराने दिग्गज नेताओं की बेचैनी भी बढ़ गई है। टिकट कटने की संभावनाओं के चलते कई नेता पार्टी बदलने या निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं।
जनता की जागरूकता ही साजिशों का जवाब
ब्लॉक अध्यक्षों को चाहिए कि वे इन सियासी साज़िशों से सावधान रहें और अपनी स्वायत्तता बनाए रखें। सियासत के शॉर्टकट और दिखावटी प्रलोभनों से बचते हुए जनहित में काम करें। हर नागरिक का कर्तव्य है कि वे अपने वोट और लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर जागरूक रहें।
इस बार के चुनाव यह तय करेंगे कि ब्लॉक अध्यक्ष एक स्वतंत्र नेता बनकर उभरते हैं या सियासतदानों के हाथों की कठपुतली। जनता को भी चाहिए कि वे सियासी खेल को समझें और सही प्रतिनिधि का चयन करें।
राजनीति के इस बदलते दौर में, आपकी जागरूकता ही लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है।