दिल्ली उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला: तिरुपति ट्रेडिंग कंपनी की अवैध धांधली पर कड़ा प्रहार, प्रशासन को कार्यवाइ के आदेश।
नई दिल्ली:बाहरी ज़िला थाना राजपार्क इलाके में कृषि भूमि पर नई कॉलोनी बसाने & अवैध निर्माण पर दिल्ली हाईकोर्ट सख्त सुल्तानपुरी भल्ला फैक्ट्री के साथ बंजर भूमि पर अवैध निर्माण को लेकर आदेश।
8 अक्टूबर 2024 को दिल्ली उच्च न्यायालय में एक अभूतपूर्व फैसला आया, जिसने न केवल तिरुपति ट्रेडिंग कंपनी की अवैध गतिविधियों पर सवाल खड़े किए बल्कि राजधानी के प्रशासनिक ढांचे को भी झकझोर दिया। माननीय मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति तुषार राव गेदेला की पीठ ने जनहित याचिका (W.P. (C) 14195/2024) पर फैसला सुनाते हुए, अवैध निर्माण और भ्रष्टाचार की जड़ें हिला दीं।
तिरुपति ट्रेडिंग की घिनौनी धांधली उजागर! याचिकाकर्ता अनिल कुमार ने दिल्ली के नांगलोई जाट गांव में कृषि भूमि पर अवैध निर्माण का मामला उजागर किया। तिरुपति ट्रेडिंग कंपनी द्वारा दिल्ली भूमि सुधार अधिनियम, 1954 का खुलेआम उल्लंघन किया गया था। जब प्रशासन और संबंधित विभागों से शिकायत की गई, तो प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता भी खुलकर सामने आई, जिससे याचिकाकर्ता को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
प्रशासनिक तंत्र की विफलता! मामले में प्रतिवादी संख्या 2 से 6 के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की गई, जबकि प्रतिवादी संख्या 1, 7 और 8 को पहले ही अभ्यावेदन प्रस्तुत किया गया था। प्रशासन की ढिलाई और निष्क्रियता के कारण अवैध निर्माण फलता-फूलता रहा। लेकिन इस ऐतिहासिक फैसले ने प्रशासन को झकझोर दिया है, जिससे अब कोई भी अवैध गतिविधि नजरअंदाज नहीं की जा सकेगी।
अदालत ने दिया कड़ा संदेश: अवैध निर्माण पर होगी सख्त कार्रवाई न्यायालय ने साफ कर दिया कि अवैध निर्माण के खिलाफ त्वरित और निर्णायक कार्रवाई की जाएगी। अब तिरुपति ट्रेडिंग कंपनी और इस अवैध निर्माण में संलिप्त सभी पक्षों पर कानूनी शिकंजा कसने वाला है। दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय अवैध निर्माण के खिलाफ एक सख्त चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है, जो कि भविष्य में किसी भी अवैध गतिविधि पर सख्त कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त करेगा।
फैसला: प्रशासन को मिली चेतावनी अदालत ने प्रतिवादी संख्या 8 को आदेश दिया कि वे तुरंत इस मामले में कार्रवाई करें और प्रतिवादी संख्या 2 से 6 को नोटिस जारी कर अवैध निर्माण रोकने के आदेश दिए। यदि आगे कोई कार्रवाई लंबित है, तो उसे भी तेजी से पूरा किया जाएगा।
यह फैसला न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे देश के प्रशासनिक ढांचे के लिए एक बड़ी चेतावनी के रूप में उभर रहा है।