विशेष समाचार: हिंदी दिवस—भाषा दिवस या मात्र एक रस्म?
संवाददाता: राशिद चौधरी
(एस के आर न्यूज)
आज 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। हिंदी भाषी भारतीय इसे उत्सव की तरह मना रहे हैं, पर क्या केवल दिवस मनाने से किसी भाषा का उत्थान हो सकता है? मुझे याद नहीं कि किसी अन्य देश में उसकी मूल भाषा के उत्थान के लिए भाषा दिवस मनाया जाता हो। जब इसराइल स्वतंत्र हुआ, तो हिब्रू भाषा को तुरंत लागू किया गया, और उसे पढ़ाया व रोज़मर्रा की भाषा में लाया गया। लेकिन हिंदी के साथ ऐसा क्यों नहीं हो सका?
आज की वास्तविकता यह है कि भारत में हिंदी बोलने वाले करोड़ों लोग हैं, फिर भी सरकारी और शैक्षणिक कार्यों में अंग्रेजी का वर्चस्व बना हुआ है। क्या ये भाषा की गुलामी कब खत्म होगी? क्या जापान, जो जापानी भाषा में काम कर रहा है, दुनिया से पीछे रह गया है? क्या चीन, जो चीनी भाषा में प्रगति कर रहा है, अंग्रेजी पर आश्रित है? तो फिर हिंदी को क्यों नहीं उसके सही स्थान पर स्थापित किया जा रहा?
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने एक बार कहा था, "निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल"। पर आज, हिंदी दिवस मनाने के बाद भी शीर्ष स्तर पर कोई ठोस प्रयास होते नहीं दिखते। राजभाषा समिति के निर्देशों का पालन हो या न हो, एक साल में सिर्फ एक दिन हिंदी दिवस मना कर हिंदी का श्राद्ध कर दिया जाता है।
हालात यह हैं कि एक हिंदी भाषी व्यक्ति को भी हिंदी में लिखे गए शब्दों का मतलब समझने के लिए अंग्रेजी की सहायता लेनी पड़ती है। यूपीएससी की परीक्षाओं में भी ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां अनुवादों में गलती होती है, और लोगों को अंग्रेजी देखकर समझना पड़ता है। इससे स्पष्ट होता है कि हिंदी को सही और वैज्ञानिक रूप से लागू करने की कितनी आवश्यकता है। हिंदी विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषाओं में से एक है—जो लिखा जाता है, वही पढ़ा और बोला जाता है।
आज आवश्यकता है कि हम स्वयं शुरुआत करें। अपने हस्ताक्षर हिंदी में करें, सरकारी पत्रों को हिंदी में लिखें, और हिंदी में संवाद करें। अगर ऊपर से ठोस प्रयास नहीं होंगे, तो नीचे से प्रयास सफल नहीं हो पाएंगे। यह जिम्मेदारी उन्हीं लोगों पर है जो उच्च पदों पर बैठकर हिंदी के उत्थान के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हैं।
गृह मंत्रालय और राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए निर्देशों का पालन करें। आज भी हमें हिंदी को उसकी गरिमा दिलाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हम सिर्फ हिंदी दिवस मनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री नहीं कर सकते। अब समय है कि हम हिंदी को भारत के माथे की बिंदी बनाएँ।
हमें मौलिक लेखन, शोध, और प्रशासनिक कार्यों में हिंदी को प्रमुखता देनी होगी। तभी यह भाषा अपनी वास्तविक गरिमा को प्राप्त कर सकेगी।
लेखक (DCP जितेन्द्र मणि)