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दिल्ली प्रशासन: एक चेहरे अनेक - कहीं जागरूकता, कहीं भ्रष्टाचार

दिल्ली प्रशासन: एक चेहरे अनेक - कहीं जागरूकता, कहीं भ्रष्टाचार

ब्यूरो: (एस के आर)
दिल्ली नगर निगम और प्रशासन में कई चेहरे देखने को मिलते हैं, जहां एक ओर जागरूकता का दावा किया जाता है, वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के गंभीर आरोप सामने आते हैं। वर्तमान में, दिल्ली में अवैध नई आबादी बसाने और पुरानी आबादी को उजाड़ने के मामले चर्चा का विषय बने हुए हैं। 
प्रश्न यह उठता है कि जब अवैध बस्तियां बसाई जा रही हैं, तो उस वक्त प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कोई रोक क्यों नहीं लगाई जाती? इन अधिकारियों को गैरकानूनी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए दंडित क्यों नहीं किया जाता? दिल्ली के मौजूदा हालात में यह स्पष्ट हो गया है कि इस तरह की गतिविधियों में प्रशासन की भूमिका कितनी जिम्मेदार है। 
हाल ही में, भलस्वा डेरी मामले में दिल्ली के लोग अपने आशियानों को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। कोर्ट के आदेश के बाद यहां दहशत का माहौल बन गया है, और प्रशासन, पुलिस, और नगर निगम के अधिकारी अपने अधिकारों का प्रदर्शन करते हुए खड़े हैं। 
इसके विपरीत, एक शर्मनाक तस्वीर भी सामने आई है, जहां पुलिस, नगर निगम, और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट नई अवैध कॉलोनियों के बसने में सीधे तौर पर लिप्त नजर आ रहे हैं। बाहरी दिल्ली के थाना राज पार्क और सुल्तानपुरी इलाके में भूमाफिया बंजर जमीन को छोटे-छोटे प्लॉट में काटकर बेच रहे हैं, और अवैध निर्माण जारी हैं। प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है, जो साफ तौर पर भ्रष्टाचार और मिलीभगत का संकेत है।

विधायक और निगम पार्षद भी भ्रष्टाचार में लिप्त

यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब अवैध आबादी बसाई जा रही है, तो उसे रोका क्यों नहीं जा रहा? और क्यों न मौजूदा समय में जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों को चिन्हित कर दंडित किया जाए? इस क्षेत्र के प्रशासनिक अधिकारी क्यों भलस्वा जैसी स्थितियों को बनाने में सहयोग कर रहे हैं? 

दिल्ली के हालात को देखते हुए जरूरी है कि इन मासूम अनजान लोगों को भविष्य में आने वाली मुसीबतों से बचाया जाए और जनहित के लिए समय रहते ही रोक लगाई जाए।

दिल्ली हाईकोर्ट की नजर में अवैध निर्माण

दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है, जिसके तहत दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को पूरी दिल्ली में चिह्नित अतिक्रमण और अवैध निर्माण की सूची पेश करने का निर्देश दिया गया है। हाईकोर्ट ने एमसीडी से यह सूची चार सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करने को कहा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अब अवैध निर्माण पर सख्त नजर रखी जाएगी। 

अब देखना होगा कि इस मामले के प्रकाशित होने के बाद भी प्रशासन की आंखें खुलती हैं या भ्रष्टाचार का खेल इसी तरह जारी रहेगा।
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