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मुफ़्त की रेवड़ी नही देश की जनता का है अधिकार

मुफ़्त की रेवड़ी नही देश की जनता का है अधिकार

मुफ़्त की रेवड़ी इन दिनों बड़ी चर्चाओं में है हर तरफ राजनीति का बाजार इस मुफ़्त रेवड़ी पर गर्म है बरसों से मुफ़्त की रेवड़ी खाने वाले नेता ही आम जनता को मुफ्त की रेबड़ी खाता देख उछल रहे हैं आखिर क्यों?

मुफ्त की रेबड़ी किया नेताओ को खाने   का हक़ है उनका कोई हिसाब नहीं कोई पूछने वाला नही उस पर कोई चर्चा नही? जब जनता का पैसा इन नेताओं के ऊपर खर्च होता है जिसकी मार हर नागरिक पर पड़ती है तो कुछ खर्च जनता को किसी स्कीम अनुसार हर घर हर नागरिक को सीधा उन नेताओं की तरह जानता को न मात्र भेजा जाता है उसका विरोध क्यों?

देश मे अगर जनता का हक़ देनी की शरुआत हुई है तो रुकावट क्यों? जिसे मुफ्त की रेबड़ी का नाम दिया गया है किया जितनी योजनाएं हैं जिनके द्वारा पैसा बांटा जाता है?वो मुफ्त की रेबड़ी नही हैं किया? फर्क सिर्फ इतना है जो योजनाएं बनती हैं उसका फायदा आम जनता कम राजनेता व उनके जानकार  ज्यादा उठाते हैं और उस योजनाओं की जानकारी व उस योजनाओं का लाभ के लिए नेताओं की गुलामी ओर के बाद लाभ पोहच पाता है? किया वो मुफ्त की रेबड़ी नही?

मुफ्त की रेबड़ी हमेशा से बाटी जारही हैं फर्क सिर्फ इतना है इस बार बिना किसी फार्म या राजनेताओं की गुलामी या उनकी झूटी अनुमति के सीधा लाभ आम जनता के घरोँ में मिल रहा है?

जैसे:- शिक्षा,बिजली,पानी,राशन,महिलाएं सफर,इत्यादि जो सीधा बिना किसी दलाल के लाभ पहोच रहा है जो देश के हर नागरिक का अधिकार है।

मुफ्त की रेबड़ी नही ये इस देश की जनता की दी हुई बड़ी बड़ी कुरबानियों का ओर उनकी मेहनत और उनके द्वारा दिये टैक्स का हिस्सा है? न कि मुफ्त की रेवड़ी।

मुफ्त की रेवड़ी बंद होनी चाहिए इस देश के हर नागरिक की चाहें वो नेता हो या कोई अधिकारी या आम जनता।

सिर्फ जनता को मिलने वाली रेवड़ी ही नही जितनी भी योजनाऐं हैं जिनके द्वारा सरकारी खजाने को लाभ के नाम पर बंटा जाता है वो सब बंद क्यों न किये जाएं? ये सब योजनाएं भी मुफ्त की रेवड़ी है पर इनका लाभ आम जनता से ज्यादा ngo के माधियम से ख़ास जानकारों को मिलता है पहले उस पर रोक क्यों नही?

मेंहगाई की मार से हर नोजवान परेशान है पढ़ लिखकर बे रोज़गार घूम रहा है जरूरत पूरी करने के लिए अपराध से जुड़कर पेट भरने ओर जरूरत पूरी करने की कोशिश करता है जिससे उसका भविषय अंधकार की तरफ जा रहा है आखिर बे रोज़गारों को नोकरियां क्यों नही?

 बे रोज़गार अपने पेट की भूँक प्यास पूरी न होने और अपने बच्चों का पालन पोषण न कर पाने के कारण मोत को गले लगा रहे है उस ओर देखने की बजाए आम जनता पर अपनी कुर्सी ओर अपनी शान बान पर अरबों खरबों  का खर्च? यही खर्च अगर जनता पर खर्च होजाय न कोई भूँक से मरेगा न बे रोजगारी फैलेगी अगर कुछ सरकारें देश की जनता का खज़ाना हर देशवासी के घर तक जन सुविधाओं द्वारा दे रही है तो किया गलत है जो मुफ्त की रेवड़ी बांटी जा रही हैं आम इंसान की जिंदगी जीने की जरूरत है न कि वाह वाही शंशाही ऐशोआराम की रेवड़ी?

बे रोजगारी नही होगी तो अपराध भी नही होगा हर घर मे अगर रोज़गार होगा तो क्यों कोई अपराध की तरफ बढ़ेगा कियों कोई मौत की तरफ कदम बढ़ायेगा कियों बांटनी पड़ेगी मुफ्त रेवड़ी?  

पूरे देश वासियों का हक़ है
हर नागरिक से टैक्स लिया जा रहा है चाहे वो खाने की चीजें हो या कुछ भी कोई टेक्स से बचा नही?
फिर पूरे हिंदुस्तानियों को लाभ मिलना जरूरी।

लेखक पत्रकार
आर, चौधरी
(SKR NEWS)

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